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कविता

महामृत्यु

प्रेमशंकर शुक्ल


वसंत पंचमी है आज
लिखनी थी
ऋतुराज पर कोई कविता
पर गुजरात में आया भूकंप
हमारे वसंत को खिलने से-महकने से
छेंक गया

वर्षों की तपस्या से
रचाया-बसाया जीवन
कुछ क्षणों में ही हो गया तबाह
महामृत्यु का तांडव
छोड़ गया
खंडहर का सबसे वीभत्स चेहरा

खंडहर में दबी
भूख से कसमसा रही बच्ची
सोचती होगी
आज! माँ को क्या हुआ
उतर क्यों नहीं रहा दूध

कहाँ पता होगा उसे
कि माँ अब जागने के लिए
नहीं सोई है
 


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